आज मैं शाम को घूमने निकली तो देखी की हमारे घर के पा बहुत बड़ा करीब अस्सी फीट का रावण खड़ा हो रहा है। पूरा बन चुका है पर उसे सजाने का काम चल रहा ह।कागज लपेटे जा रहे थे। मैं खड़े होकर उसे ध्यान से देख रही थी। मुझे लगा कि उसके आँसू टपक रहे हैं।मन से एक सवाल निकला-" कागज के रावण के आँखों में आँसू?"मन से मन की बात होने लगी विचारों के माध्यम से।
रावण ने कहा " हर वर्ष मेरा कद बढ़ाते जा रहे हैं, मेरा पुतला जगह जगह रख रहे हैं। उसे जलाने अब बड़े बड़े नेता आ रहे हैं। मेरा कद बढ़ रहा है तो मुझे मारने वाले का पद बढ़ रहा है। " हां यह सच है तो तुम्हे क्या तकलीफ है मैने कहा तो वह बोल उठा "बहुत तकलीफ है। सैकड़ो साल से मुझे जला रहे हों पर मैं तो बढ़ते ही जा रहा हूं। कभी जल कर मरा हूं या फिर मुझे तुम लोग भूले हो। मैने तो सीता को जब उठाया तभी छूआ था उसके बाद तो मैं सिर्फ बात ही किया हूं। कभी सीता को छुआ नहीं।" सही बोल रहे हो रावण, मैने कहा तो लगा जैसे मैने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है।
रावण ने फिर कहा " मुझे मारने.वाला राम तो हो? झूठ, रिश्वत में डूबा व्यक्ति मुझे मार रहा है। अमर्यादित व्यक्ति मुझे मार रहा है। कुछ वर्षो से तो दुराचारी व्यक्ति मुझे मारने आता है तब मैं रो उठता हूं। कलयुग में तो शायद ही कोई राम जैसा हो? रास्ते में चलते ,बस में चढ़ते या सिनेमा हॉल में या फिर मेले में करीब करीब हर पुरुष नारी को गलत नजर से देखता और छुता है। आज तो ब्राम्हण बन भागवत सुनाता रामायण सुनाता संत भी दुराचारी हो गया है। वह मुझे क्या मारेगा? आज बड़े पद में बैठा व्यक्ति और नेता भी बलात्कारी होगया है, क्या उसे हक है मुझे मारने का? पहले अपने आप को देख लें कि वे कितने पानी में हैं फिर मुझे मारें। मुझे र साल मार मार कर जिवित रखे हैं। मारना है तो दुराचारी को मारे बलात्कारी को मारे। इसे तो आज के समय में.सजा भी नहीं मिलती है, उसे क्यों नहीं जिंदा जला देते। मैं तो एक बार में ही मर गया था। आज किसे मार रहें है। रामलीला तो ठीक है। जिसमे रावण प्रतिकात्मक रुप से मर जाता है, उसे बार बार जलाना क्यों?"
रावण के आँसू झरझर झरझर बहने लगे। मै भी सोचने लगी आखिर यह रालणको मारने की प्रथा क्यों शुरु की गई। इसे रामलीला तक ही सीमित रखना था। बार बार रावण का कद बढ़ा कर बलात्कारी को भी बढ़ा रहे हैं।इन बलात्कारियों के पुतले क्यों नहीं? हर साल इन्ही के पुतलों को जलाया जाये। आज फिर से एक बार रामलीला की शुरुआत हो और रालण के पात्र को ही गिर कर मरते दिखाया जाये न कि इस तरह से रावण को मारा जाये।
हमारी कथाये राम ने रावण को मारा तक ही न हो। आज इस कथा को नहीं जानने वाले रावण को सोशल मिडिया में बलात्कारी भी लिख रहे है। आज हमारी जानकारी भी किस गंदी दिशा की ओर जा यही है। आज संजीवनी बूटी किसके लिये लेकर आये थे हनुमान उसका उत्तर नहीं दे पाते हैं। राम लोग कितने भाई है उसे नहीं बता पाते हैं पर यह जरुर जानते है कि रावण ने सीता का हरण किया तो राम ने रावण मार दिया। बस हमारी एख युग की कथा का समापन हो जाता है।
अब भी हम लोग सोच सकते है रावण को जलाये या फिर राम कथा का मंचन कर हर साल बलात्कारी को मारे या जलायें।
चलिये आज के लिये इतना ही काफी है, पुतले के आँसू ने कुछ तो चिंतन करने का विषय दिया।
रावण ने कहा " हर वर्ष मेरा कद बढ़ाते जा रहे हैं, मेरा पुतला जगह जगह रख रहे हैं। उसे जलाने अब बड़े बड़े नेता आ रहे हैं। मेरा कद बढ़ रहा है तो मुझे मारने वाले का पद बढ़ रहा है। " हां यह सच है तो तुम्हे क्या तकलीफ है मैने कहा तो वह बोल उठा "बहुत तकलीफ है। सैकड़ो साल से मुझे जला रहे हों पर मैं तो बढ़ते ही जा रहा हूं। कभी जल कर मरा हूं या फिर मुझे तुम लोग भूले हो। मैने तो सीता को जब उठाया तभी छूआ था उसके बाद तो मैं सिर्फ बात ही किया हूं। कभी सीता को छुआ नहीं।" सही बोल रहे हो रावण, मैने कहा तो लगा जैसे मैने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है।
रावण ने फिर कहा " मुझे मारने.वाला राम तो हो? झूठ, रिश्वत में डूबा व्यक्ति मुझे मार रहा है। अमर्यादित व्यक्ति मुझे मार रहा है। कुछ वर्षो से तो दुराचारी व्यक्ति मुझे मारने आता है तब मैं रो उठता हूं। कलयुग में तो शायद ही कोई राम जैसा हो? रास्ते में चलते ,बस में चढ़ते या सिनेमा हॉल में या फिर मेले में करीब करीब हर पुरुष नारी को गलत नजर से देखता और छुता है। आज तो ब्राम्हण बन भागवत सुनाता रामायण सुनाता संत भी दुराचारी हो गया है। वह मुझे क्या मारेगा? आज बड़े पद में बैठा व्यक्ति और नेता भी बलात्कारी होगया है, क्या उसे हक है मुझे मारने का? पहले अपने आप को देख लें कि वे कितने पानी में हैं फिर मुझे मारें। मुझे र साल मार मार कर जिवित रखे हैं। मारना है तो दुराचारी को मारे बलात्कारी को मारे। इसे तो आज के समय में.सजा भी नहीं मिलती है, उसे क्यों नहीं जिंदा जला देते। मैं तो एक बार में ही मर गया था। आज किसे मार रहें है। रामलीला तो ठीक है। जिसमे रावण प्रतिकात्मक रुप से मर जाता है, उसे बार बार जलाना क्यों?"
रावण के आँसू झरझर झरझर बहने लगे। मै भी सोचने लगी आखिर यह रालणको मारने की प्रथा क्यों शुरु की गई। इसे रामलीला तक ही सीमित रखना था। बार बार रावण का कद बढ़ा कर बलात्कारी को भी बढ़ा रहे हैं।इन बलात्कारियों के पुतले क्यों नहीं? हर साल इन्ही के पुतलों को जलाया जाये। आज फिर से एक बार रामलीला की शुरुआत हो और रालण के पात्र को ही गिर कर मरते दिखाया जाये न कि इस तरह से रावण को मारा जाये।
हमारी कथाये राम ने रावण को मारा तक ही न हो। आज इस कथा को नहीं जानने वाले रावण को सोशल मिडिया में बलात्कारी भी लिख रहे है। आज हमारी जानकारी भी किस गंदी दिशा की ओर जा यही है। आज संजीवनी बूटी किसके लिये लेकर आये थे हनुमान उसका उत्तर नहीं दे पाते हैं। राम लोग कितने भाई है उसे नहीं बता पाते हैं पर यह जरुर जानते है कि रावण ने सीता का हरण किया तो राम ने रावण मार दिया। बस हमारी एख युग की कथा का समापन हो जाता है।
अब भी हम लोग सोच सकते है रावण को जलाये या फिर राम कथा का मंचन कर हर साल बलात्कारी को मारे या जलायें।
चलिये आज के लिये इतना ही काफी है, पुतले के आँसू ने कुछ तो चिंतन करने का विषय दिया।
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