बारीश तो मुसीबतें ही लेकर आती हैं। एक बार कुत्ते के चार बच्चे बारीश में भीग रहे थे। बार बार मुंह ऊपर करके रो रहे थे।
एक भी पेड़ नहीं जिसकी छांव में बैठ सकें।आजकल तो दरवाजे नहीं लोहे के गेट होते हैं।वह पिल्ले हर घर के दरवाजे पर जाकर कूं कूं करते और आसमान की तरफ देखते।मै तभी बाहर निकली। मेरे घर के आंगन में आ गये। दरवाजे के नीचे के छज्जा था वहां बैठ गये।पर ये क्या ? बारीश तेज हो गई और आ़गन में पानी भर गया। मुझे कुत्ते पसंद नहीं है। अब तो वे मुझे देखने लगे और मैं उनको।वे वरामदे में चढ़ने लगे तो मैने आने दिया।
अचानक मेरे मुंह से निकला" है ईश्वर इतना पानी गिरा रहे हो तो इन जानवरों के लिये जगह भी दो। ये तो बोल भी नहीं सकते हैं, कहां जायेंगे।" अचानक जोर से बिजली कड़की " तड़तड़ तड़तड़" चारो पिले आपस में चिपक कर रोने लगे। आज इस कठिन समय में चारो सा थे। इंसान होता तो पहले अपने लिये सोचता पर ये चारो का साथ छूट नहीं रहा था। शाम को पानी बंद हो गया।एक रोटी के चार टुकड़े करके दे दी। तीन घंटे मेरे वरामदे में रहे पर मुझे और रोटी बनाने की याद भी नहीं आई। पानी बंद होते ही वे भाग कर गेट के पास चले गये। मैने गेट खोल दिया। एक पिल्ला जाना नहीं चाह रहा था तो बाकी तीन भी अंदर आ गये।बहुत मुश्किल से ये लोग बाहर गये। एक जगह रूके लोग भी पानी बंद होते ही अपने रास्ते चले जाते हैं । जब तक खड़े रहेंगे तरह तरह की बातें करेंगे। ये कुत्ते तो उन इंसानों से बेहतर है जो साथ नहीं छोड़े। बहुत देर के बाद वे अलग अलग रास्ते गये पर उनके बीच दोस्ती जरुर हो गई।रह.रह कर मुझे देखते रहते हैं। सोचते होंगे की इंसानों के बीच में भी कोई एक ही इंसान होता है।सच है आज इंसान चांद पर जाकर भी अपने बगल वाले के दिल तक नहीं पहुंच पाया है।
एक भी पेड़ नहीं जिसकी छांव में बैठ सकें।आजकल तो दरवाजे नहीं लोहे के गेट होते हैं।वह पिल्ले हर घर के दरवाजे पर जाकर कूं कूं करते और आसमान की तरफ देखते।मै तभी बाहर निकली। मेरे घर के आंगन में आ गये। दरवाजे के नीचे के छज्जा था वहां बैठ गये।पर ये क्या ? बारीश तेज हो गई और आ़गन में पानी भर गया। मुझे कुत्ते पसंद नहीं है। अब तो वे मुझे देखने लगे और मैं उनको।वे वरामदे में चढ़ने लगे तो मैने आने दिया।
अचानक मेरे मुंह से निकला" है ईश्वर इतना पानी गिरा रहे हो तो इन जानवरों के लिये जगह भी दो। ये तो बोल भी नहीं सकते हैं, कहां जायेंगे।" अचानक जोर से बिजली कड़की " तड़तड़ तड़तड़" चारो पिले आपस में चिपक कर रोने लगे। आज इस कठिन समय में चारो सा थे। इंसान होता तो पहले अपने लिये सोचता पर ये चारो का साथ छूट नहीं रहा था। शाम को पानी बंद हो गया।एक रोटी के चार टुकड़े करके दे दी। तीन घंटे मेरे वरामदे में रहे पर मुझे और रोटी बनाने की याद भी नहीं आई। पानी बंद होते ही वे भाग कर गेट के पास चले गये। मैने गेट खोल दिया। एक पिल्ला जाना नहीं चाह रहा था तो बाकी तीन भी अंदर आ गये।बहुत मुश्किल से ये लोग बाहर गये। एक जगह रूके लोग भी पानी बंद होते ही अपने रास्ते चले जाते हैं । जब तक खड़े रहेंगे तरह तरह की बातें करेंगे। ये कुत्ते तो उन इंसानों से बेहतर है जो साथ नहीं छोड़े। बहुत देर के बाद वे अलग अलग रास्ते गये पर उनके बीच दोस्ती जरुर हो गई।रह.रह कर मुझे देखते रहते हैं। सोचते होंगे की इंसानों के बीच में भी कोई एक ही इंसान होता है।सच है आज इंसान चांद पर जाकर भी अपने बगल वाले के दिल तक नहीं पहुंच पाया है।
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