रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे -103

सन 2000 से 2002 तक अपूर्व मे बहुत परिवर्तन आया ।वह ग्यारह साल का हुआ तब पूजा करके ग्यारह लोगों को कपड़ा बांटे ।वह जब पैदा हुआ था तो मेरी माँ ने कहा कि बहुत दिनो मे पैदा हुआ है तो इसे खरीद कर कपड़े मत पहनाना ।दिये हुये कपड़े ही पहनाना ।अब हम लोग इस ग्यारहवें जन्म दिन को अच्छे से मनाये और कपड़े बांटे ,मिठाई खिलाये ।उसमे आत्मविश्वास भी  बढ़ रहा था ।

उसी साल 2011 में गणेश के कार्यक्रम में वह अकले डांस करने चला गया।शाम को अपने दोस्त शशांक को पांच रूपये प्रवेश शुल्क देकर आया ,।अपने दोस्त शशांक का भी पैसा दिया ।दोनों एक ही गाना पसंद किये थे ।दोनों साथ में भी करने का सोच रहे थे पर सब बदल गया ।वह हमारे घर पर चार बार प्रेक्टिस भी किया था।फिल्म "दिल चाहता है क्या " का गाना था "हम हैं नये अंदाज क्यों हो पुराना "  हम लोग आठ बजे खाना खा रहे थे तब शशांक का  फोन आया कि वह डांस नही करेगा। तबियत खराब होने का बहाना बना दिया ।अपूर्व फिर से नाम लिखाने गया और पाँच रूपये प्रवेश शुल्क देकर आया क्योंकि शशांक ने पैसा नही दिया था ।रात नौ बजे कार्यक्रम था ।वह अकेले चला गया ।बीच में मरघट पड़ता है पर वह तो डरता ही नही है ।हम लोग चुपचाप साढ़े नौ बजे गाड़ी से देखने के लिये गये। वह आगे की कुर्सी पर बैठा था ।हम लोग पीछे खड़े थे थोड़ी दूर में कि वह देखे मत ।उसका नाम पुकारे तो वह तुरंत उठा ,अपना कैसेट दे दिया और मंच पर चढ़ गया ।

गाना बजने लगा "हम हैं नये अंदाज क्यों हो पुराना "दिल चाहता है फिल्म का ।वह पूरे जोश और आत्मविश्वास के साथ मंच पर अकेले डांस करने लगा।साटन का हरे रंग का फूल शर्ट और काला जिंस पहना था। उसने पूरे डांस को खुद ही कंम्पोज किया था ।सिनेमा हमारे साथ ही एक बार देखा था ।मै तो कत्थक सीखी थी और मंच पर बहुत कार्यक्रम दी थी पर उसके पापा तो कभी सोचे भी नही थे कि अकेले मंच पर जायेगा।वह यही देखने गये थे कि वह नही कर पायेगा पर वह उनकी बात को गलत कर दिखाया।वह अपने स्कूल में बहुत नाटक और नृत्य में भाग लेता था पर और भी बच्चे साथ में रहते थे ।चम्मच का सेट ईनाम में मिला ।बहुत खुश था।

28 सितम्बर 2001,को सुबह आठ बजे उसके पापा ने अपना जन्मदिन का केक काटा।अपूर्व ने फोटो खिंची।वह अपने पापा को एक लिफाफा दिया और एक गिफ्ट दिया ।गिफ्ट स्वयं की पैक की हुई थी ।वह यह सब देकर स्कूल चला गया ।उसके जाने के बाद लिफाफा खोले तो ग्रिटिंग थी उपर अंग्रेजी मे प्यारे पापा और नीचे मे मम्मी एंड गुल्लु ।उसके पापा ज्यादा प्यार आने पर गुल्लु कहते थे ।गिफ्ट को खोले तो उसमें पेन था ।बहुत आश्चर्य हुआ कि यह सब वह कैसे खरीदा कभी कभी टॉफी के लिये पैसे मांगता था पर वह टॉफी न खाकर पैसे जमा कर लिया था ।वह एक डिब्बे में भी पैसे जमा करता था ।उसके पापा अपने अंतिम समय तक उस पेन से ही लिखते रहे ।एक यादगार घटना ।

उसके नाम पर एक प्लाट लिये थे वहां पर जब अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो नाबालिग होते हुये भी उसे वोट डालने के लिये कहा गया ।वह बहुत खुश था ।उसने 1 नवम्बर 2001 को अपना पहला वोट डाला ।पूरे आत्मविश्वास के साथ अकेले जाकर ठप्पा लगाकर आया ।

एक दिन वह अपने दोस्त के साथ सायकिल से घर से चार पांच किलोमीटर दूर शारदा चौक चला गया।वहां पर जैराम टॉकिज के पीछे रोहणी बिल्डिंग में बैंक आफ इंडिया था ।उसके पापा वहीं थे ।वह पीछे जाकर जब "पापा "बोला तो इनको लगा कि मुझे धोखा हो रहा है अपूर्व यहां कैसे आ सकता है पर पीछे देखे तो अपूर्व ही खड़ा था ।वह बोला "देखो दिनेश भी आया है ।तुम्हारा बैंक दिखाने लाया हूँ ।" पापा ने कहा पानी पी लो ,शू शू चले जाओ और बीस रूपये दिये कि टॉफी खा लेना ।पूरा ट्रैफिक वाला जी ई रोड मे इस तरह से आना बहुत ही बहादुरी का काम था। वह लौट गया ।इसके पहले भी चार तारीख को इसी का जुड़वा भाई दीपक को होलीक्रास स्कूल कापा दिखाने ले गया ।वहां से अपने पापा के दोस्त जीनो एन्थोनी के घर मोवा चला गया ।दीपक को घुमाने ले गया था ।एक घंटे में घर भी वापस आ गया ।एक भरा हुआ रास्ता जहाँ अधिकतर दुकाने है ।  ग्रामीण लोग ,ट्रक बस के अलावा हर तरह की गाड़ियां वहां पर चलती हैं ।रोड पार करने के लिये बड़ों को सोचना पड़ता है वहाँ ये बच्चे घूम कर आ गये ।आत्मविश्वास बढ़ते जा रहा था ।

अपूर्व ने ट्रैंडी चलाना सीखा और रोज शाम को अपने पापा के आने के बाद गाड़ी चलाता था।उसे घर के पास मे बी टी आई मैदान है वहां गाड़ी सिखाने ले जाते थे।अब वह गाड़ी चलाना सीख गया। अपने पापा को भी बैठा कर चला लेता था ।रविवार 3 फरवरी 2002 को दोपहर को अपूर्व और उसके पापा बाजार से सामान लेकर आये थे ।अपूर्व हमेंशा कई तरह गाड़ी रखते ही एक बार चला कर आता हूँ करके गाड़ी लेकर चला गया ।घर के सामने ही आठ दस मकान के चक्कर लगा लेता था ।वह घूम कर लौट रहा था तभी हमारे घर के दो घर पहले चौक है वहां पर एक मेटाडोर उसे ठोक दी ।वह बिजली के खम्भे के पास गिर गया ।वह बच गया ।थोड़ी सी चूक मे सर लग सकता था .ट्रेडी का सायलेंसर फट गया था ।अपूर्व गाड़ी को उठा कर चलाते हुये  घबराते हुये घर की तरफ आया ।मै आवाज सुनकर बाहर आई वह मेटाडोर वाला भी भागते आया और अपूर्व को डांटने लगा गाड़ी ठीक से नहीं चलाता है।पैसा निकाल मेरी गाड़ी का हेंडल टेढ़ा हो गया है ।मैने कहा हमारी गाड़ी को तुम बनवाओ ,वह अपनी बात रख रहा था और मैं।आखिर वह भाग गया ।मैंने कहा कि हम लोग पुलिस के पास जाते हैं।वह चला गया पर अपूर्व के पापा कांप रहे थे ।उन्हे लगा कि बच्चे को कुछ हो जाता तो ।थोड़ा सा भी बुखार आये या कुछ और तबियत खराब हो तो छाती के ऊपर ही सुलाते थे और जागते रहते थे ।

चार अगस्त से दस अगस्त तक अपूर्व के पापा की ट्रेनिंग थी भोपाल में ।वह बहुत खुश था अपने पापा से बोला मैं माँ के साथ रहुंगा ,माँ को देखुंगा ।हम लोग उसे आश्चर्य से देख रहे थे ।उस समय उसे बुखार था ।स्वयं बीमार था और कह रहा था माँ को देखुंगा।उनके जाने के बाद रोज रात को आँगन की लाइट बंद करता था ।गेट में ताला लगाता था ।रात को मेरे को सो जाओ माँ बोलता था ।ग्यारह तारीख को ये लौटे ।

हम लोग तिरोड़ी जाने वाले थे ।वहां पर मेरा भाई रहता था ।वहाँ मैंगनिज माइंस मे मैनेजर था।अपूर्व इस कारण भी खुश था कि शिखा दीदी और चीकू के पास जा रहा है ।मेरी भतीजी और भतीजा ।बीस तारीख को अहमदाबाद से गये थे ।भंडारा से उतर कर जीप से तिरोड़ी जाते हैं।पूरे पांच दिन रहे ।पांचो दिन बारीश होती रही ।बहुत बड़ा बंगला था ।बहुत से आम और पीपल के पेड़ थे।खूब बड़ा बगीचा था।जहाँ हल्दी प्याज और कई प्रकार की सब्जियां लगी हुई थी ।बड़ा सा कमरा जिसमें बड़ी बड़ी खिड़कियां थी।बंदर आ कर दीवार पर बैठ जाते थे ।लंगूर की तरह के बंदर आते थे ।बाइस तारीख को राखी थी।तेइस तारीख को शिखा का जन्मदिन था ।

रात को कमरे की सभी खिड़कियां खुली रहती थी जंगल की ठंडी हवा आते रहती थी। कमरे में पंखा भी चलते रहता था ।अपूर्व रात को पहिली बार अकेले सोया।रात को ठंड लगने पर अपने आप चादर खींच कर सोया ।पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन रहा था ।बच्चे तीन सिनेमा देखे ।"ओम जय जगदीश " "जानी दुश्मन " "डाक बंगला "

तेईस को जन्मदिन मनायें उस दिन भी अपूर्व ने डांस किया ।"मितवा ओ मितवा "डांस में तीनो थे शिखा चीकू और अपूर्व ।बारीश मे बंगल के बगीचे के गड्ढों के पानी में छपाक छपाक खेलते रहा पर उसे छिंक भी नहीं आई ।

चौबीस को हम लोग रामटेक गये ।बहुत अच्छी जगह है ।कालीदास ने शाकुन्तलम की रचना यहाँ पर की है ।मै छत्तीसगढ़ के रामगढ़ को तो नहीं देखी हूँ पर यह जगह लगती है वैसी ही जैसे कालीदास ने लिखा है ।पहाड़ी पर पत्थर की सिढ़ियों से चढ़ते हैं ।एक किला सा लगता है ।यहाँ पर लक्षमण का मंदिर भी है।पहाड़ी के ऊपर से पूरा शहर बहुत ही सुंदर लगता है ।नीचे में एक स्थान पर शाकुन्तलम के चित्र बने है ।संस्कृत मे लिखे हुये हैं ।चित्रो के माध्यम से कथा को समझाया गया है ।बीच में फव्वारा बना है।पूरा दृश्य शकुंतला को दिखा रहा है।पहाड़ी के ऊपर बादल आते जाते रहते हैं, लगता है सच मे ये बादल संदेश ले जा रहे हैं ।

इस रामटेक में भी बहुत बंदर है ।इनको चना चाहिये ।लोग इनको चना खिलाते रहते हैं ।कभी कभी लोगों कआ सामान भी ले लेते है ।मेरा पर्स ले लिया था ।मेरी भाभी ने बंदरों को चना दिया तब पर्स को छोड़े ।

मंदिर के नीचे में नदी है जहां पर कर्मकांड होता है ।अस्थि विसर्जन का काम होता है ।पिंड दान होता है ।हम लोग घूम कर मजे से आ गये ।अपूर्व तो यह सब देख कर बहुत खुश था।रात को हम लैग बंगले मे पहुंचे ।दूसरे दिन टाटा सूमो से मै शिखा ,मेरी दीदी और अपूर्व वापस आ गये ।अपूर्व एक जिम्मेदार बन रहा था। 2001-2002 अपूर्व का ही था ।यह जिम्मेदारी बढ़ रही थी ।अब वह एक पूरा व्यक्ति का एहसास दिलाने लगा था ।किशोरावस्था के पहले का समय ।जब बच्चा बच्चेपन के एहसास से आगे बढ़ना शुरू करता है ।

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